पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय ज़मीन पर चीन के कब्जा करने वाले व्यवहार से दुनिया के सभी भ्रमों को दूर कर दिया कि बीजिंग अपने पड़ोस और दुनिया को कैसे देखता है। इससे पहले नई दिल्ली में आम सहमति एक दूसरे के सम्मान और समझ के समीकरण के साथ आगे बढ़ने की थी।
दरअसल, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन की नीति में व्यक्तिगत रूप से ध्यान दे रहे थे, राष्ट्रपति शी जिनपिंग से पिछले प्रधानमंत्रियों की तुलना में अधिक बार मुलाकात की। इन बैठकों में सबसे हालिया एक साल पहले अक्टूबर 2019 में तमिलनाडु के महाबलीपुरम में अनौपचारिक शिखर सम्मेलन था।
जाहिर है, दोनों नेताओं के बीच निजी कमेस्ट्री मौजूद थी, लेकिन इससे भारत को कुछ हासिल नही हुआ। इसके बाद चीन ने महामारी के रूप में दुनिया में कोरोना का कहर पैदा किया और अपने इस घटिया काम को छिपाने के लिए वह भारत और अपने सभी पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद में उलझ गया ताकि दुनिया कोरोना महामारी से लड़ने में व्यस्त रहे और वह पड़ोसी देशों की ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर ले।
ऐसी ही कोशिश चीन ने भारत के साथ LAC पर घुसपैठ की साजिश रच कर की। जिसे रोकने के लिए शीर्ष स्तर पर निजी कमेस्ट्री काम नही आई। चीन पर नजर रखने वालों ने कहा है कि चीनी सैनिकों को भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ का आदेश शी जिनपिंग ने अपनी सेना के सेना को दिए थे।
गालवान में खूनी संघर्ष, 20 भारतीय सैनिकों की मौत (पीएलए कर्मियों की एक अज्ञात संख्या में भी मृत्यु हो गई) और पूर्वी लद्दाख में कई प्रमुख ऊंचाइयों पर हुए बाद के रुख ने भारत के राजनीतिक, राजनयिक और भारत के शीर्षस्थ क्षेत्रों में स्वदेशीकरण की भावना को मजबूत किया है, यह सब अब इतिहास है।
चीनी सैन्य नेतृत्व और चीनी सरकार पर भरोसा नहीं किया जा सकता है और चीन के साथ एक साथ हो रहे भारत के विवाद में भी शी जिनपिंग का हाथ है। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि 21वीं सदी को चीन एक चीनी सदी बनाना चाहता है, ना की एशियाई।
भारत के क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण के बाद भारत ने भी चीन के खिलाफ कड़ा रूख अपना लिया है और भारत ने LAC पर सैनिकों की संख्या बढ़ाने के साथ टैंक, तोप, आर्टिलरी जैसे हथियार भी तैनात कर दिए हैं। भारत से इस क़दम से चीन को मिर्ची लग चुकी है।
रही सही कसर गलवान घाटी में निकल गई जब भारत के 20 सैनिक शहीद हुए तो भारत ने उन्हें पूरे सम्मान के साथ अलविदा कहा जबकि चीन के 45 से ज़्यादा सैनिक शहीद हुए तो वह अब ना तो इसे कबूल रहा और ना ही उनका सम्मान पूर्वक अंतिम संस्कार कर पाया। क्योंकि इससे उसकी नाक कटने का डर था।
हालांकि अभी भी नई दिल्ली ने चीन से राजनयिक दूरी नही बनाई है, लेकिन यह अब समय की मांग है कि चीन का पूरी तरह से बॉयकाट किया जाए। विदेश मंत्रालय शायद यह उम्मीद कर रहा है कि सीमा पर भारत की ताकत दिखाने से चीन के उत्साह में कमी आएगी और सरकार का मानना है कि चीन जैसे राष्ट्र के खिलाफ युद्ध करने से दोनों पक्षों का बहुत ज़्यादा हानि उठानी पड़ेगी।
भारतीय रणनीतिक विशेषज्ञों और रक्षा विश्लेषकों के बीच अब यह विचार किया जा रहा है की अब भारत को अपनी चीनी नीति में बदलाव करने का समय आ गया है। इसके साथ ही भारत को अब ताइवान और तिब्बत के साथ मंगोलिया, हांगकांग जैसे क्षेत्रों के लिए क़दम उठाना चाहिए।
तिब्बत और ताइवान को लेकर QUAD की भूमिका
तिब्बत और भारत : भारत के पास अब चीन के खिलाफ तिब्बत कार्ड खेलने का समय आ गया है। अगर भारत अभी भी ऐसा नही करता है तो चीन को भारत की क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान करना नही आएगा।
मोदी सरकार कई काम कर सकती है: जैसे दलाई लामा को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान - भारत रत्न, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ समन्वय में वैश्विक मंचों में तिब्बत के लिए साहसपूर्वक उठाना, भारत में निर्वासित तिब्बती समुदाय को एक अधिक दृश्यमान प्रोफ़ाइल दिया जाना और चीन सीमा का तिब्बती सीमा के रूप में उल्लेख करना शुरू करना।
इसके साथ ही SFF (Special frontier Force) जिसमें तिब्बती शरणार्थी भर्ती होते हैं, उसको आगे बढ़ा कर दुनिया के सामने लाने और मज़बूत करने के साथ पूरी LAC पर तैनात करने का वक्त भी आ चुका है, इससे तिब्बत में रहने वाले लोगों और दुनिया भर में तिब्बती शरणार्थियों को चीन के खिलाफ लड़ने और अपने देश को चीन से स्वतंत्र कराने के लिए नया जोश मिलेगा। साथ ही तिब्बती लोगों की आवाज़ पूरी दुनिया को सुनाई देगी।
इन सभी को एक साथ करके चीन को झटका देने की ज़रूरत नही है बल्कि यह काम राजनीतिक सूझ-बूझ के साथ किया जाना चाहिए। ताकि चीन को समझ में आ जाए की भारत के साथ उलझ कर उसको कुछ मिलने वाला नही है, उलटा उसका ही नुक़सान होगा।
ताइवान और भारत : भारत को विश्व स्वास्थ्य सभा में ताइवान के पर्यवेक्षक की स्थिति जैसे मुद्दों पर कड़ा रुख अपनाने और ताइवान के साथ व्यापार और व्यापारिक संबंधों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
भारत को ताइपेई और नई दिल्ली के बीच राजनयिक आदान-प्रदान को भी देखना चाहिए। भारत की तरह, ताइवान एक गर्वित लोकतंत्र है, लेकिन भारत के विपरीत यह चीन से ज़्यादा नज़दीक है और चीन की वजह से अपने अस्तित्व के खतरे का सामना कर रहा है।
वन चाइना नीति के लिए भारत के निर्विवाद सम्मान को गलवान घाटी में क्रूरता और इसके आसपास की घटनाओं में एक मृत-अंत मिल चुका है। इसलिए भारत को क्वाड राष्ट्रों (अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान) के साथ घनिष्ठ समन्वय का स्वागत करना और आवश्यक हो गया है, लेकिन चीन को कंट्रोल करने का काम भारत को अपने दम पर करना होगा।
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